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Thursday 25 February, 2010

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं


कभी मांगते वोट धर्म पर कभी मांगते जाति पर,

जीते पीछे येही नेता मुंग द्ररते छाती पर

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं-



दंगो में हो तुम मरते कभी धमाको का हो शिकार

चित्हरे चित्हरे उर जाते है आंसो का लगता अम्बार

लाख करो विनती पर है कोई होता सुनने को तियार

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं -



वादों की तो लड़ी लगी है वादों की तो झड़ी लगी

नए नए अयेलानो के होर में लगी हर सरकार

रोटी कपडा और मकान जरूरत के तीन समान

जिनको पूरा करने में भी होते ये नेता नाकाम

पब्लिक तुम संघर्ष करो कोई तुम्हारे साथ नहीं-



कहत देवेश और नवनीत सुन भाई पब्लिक अपनी नीत
खड़ा करो ऐसा प्रतिनिधित्व जो सबको माने अपना मीत
उंच नीच जाति वेश भाषा को छोड़ कर सबसे ऊपर देश {भारत} की प्रीत


पब्लिक तुम संघर्ष करो कलम तुम्हारे हाँथ हैं, पब्लिक तुम संघर्ष करो कलम तुम्हारे हाँथ हैं




5 comments:

  1. अच्‍छी बात है नवनीत कविता के माध्‍सम से आपने अच्‍छी बात कहने की कोशिश की है

    एम.मुबीन

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  2. ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है!लिखने के साथ साथ पढ़ते रहिये!!होली की शुभकामनायें...

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  3. आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice

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  4. This comment has been removed by the author.

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