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Tuesday 14 December, 2010

भ्रष्ट्राचार का 2010

2010 अपनी समाप्ति की ओर है, 2010 भारत के इतिहास में कभी न भुलाये जाने वाले अध्याय के रूप में जुड़ गया है । 2010 का साल एक ओर जंहा भारतवासियों को गौरवान्वित होने का मौका देता है तो वहीं भ्रष्ट्राचार का काला साया हमें शर्मसार होने पर मजबूर भी करता है। देश को जंहा इस साल ने खेलो में नए कीर्तिमान स्थापित करने का मौका दिया तो दूसरी तरफ इंही खेलो के आयोजन में हुए व्यापक भ्रष्ट्राचार ने अंतराष्ट्रिये पटल पर हमारी छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजनेता से लेकर पत्रकार तक सरकार से लेकर विपक्ष तक सभी भ्रष्ट्राचार के दलदल में धंसे नज़र आये।

२ जी स्पेक्ट्रेम घोटाला हो या कर्नाटका का भूमि विवाद हर बार भारत का आम जन अपने को ठगा सा महसूस करने के लिए मजबूर था। आदर्श सोसायटी घोटाले ने भारत के अमर सपूत शहीदों को भी नहीं बक्शा उनके परिजनों को मिलने वाला आशियाना भी भ्रष्ट्राचार के इस दलदल ने नीगल लिया। लोकतंत्र का प्रहरी कह जाने वाला मिडिया भी इन सब से अछूता न रह सका नीरा राडिया प्रकरण से लोगो का विश्वास लोकतंत्र के इस प्रहरी से उठता नज़र आया।

2010 साल है जब न्यायपालिका भी संदेह के घरे में आती है देश सर्वोच्च न्यायलय किसी प्रान्त के उचतम न्यायलय के खिलाफ कठोर टिपणी करता है। भारत में आम जन अपना अंतिम सहारा न्यायलय को ही मानते है लेकिन इस प्रकरण से उनका विश्वास कंही न कंही कमजोर हुआ है ।जिन लोगो पर उत्तर देने की जिम्मेवारी है वही खामोश बठे है। जिसका दामन झाकने की कोशिश करो वहीं दाग नज़र आता है।

जाते जाते 2010 हमे सीख देकर जा रहा है की अब बहुत हो गया बहुत सह लिया अब बस अब फिर किसी धमाके की आवश्कता है क्योंकि बहरो को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है। यंहा दुष्यंत के कविता कि व लाइन ठीक प्रतीत होती है की-

हो गई है पीर पर्वत. सी पिघलनी चाहिएए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

विशेषकर युवाओ को आगे आना होगा इस भ्रष्ट्राचार से भारत को मुक्त करना होगा। सरकार अगर इन भ्रष्ट्राचारियो को सजा नहीं सुनाती है तो अब अगले पांच साल का इंतजार नहीं करके इन देशद्रोहियों को उनके अंजाम तक पंहुचाना होगा ताकि आने वाले समय में फिर कोई देश के साथ गद्दारी करने की हिम्मत न कर सके।