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Thursday 4 March, 2010

राशन की लाइन

आज सुबह मैं जल्दी उठा
सोचा चलो सरकारी दुकान से राशन ले आते है,
कुछ पैसे बचाते है
सरकार की मेहरबानियो का हम कुछ फायदा उठाते हैं ।

यह सोचकर मैं सरकारी दुकान की ओर चल पड़ा
देखकर राशन की लम्बी लाइन मेरा होश उड़ा
फिर भी मैंने मन को हिम्मत बडाई चलो आज राशन ले आये भाई
यह सोचकर मैं होगया सबसे आखिर में खड़ा ।

मेरे आगे खड़े थे एक वृद्ध व्यक्ति उनके आगे खड़ी थी एक महिला
वह महिला पीछे पलटी थोडा मुस्कराई बोली बाबा कर लो अगले जन्म की तैयारी
लगता नहीं आये गी इस जन्म आपके राशन की बारी,
बाबा भी थोडा मुस्कराए बोले
भूख तो आखिर ले ही ले गई जान, क्यूँ न राशन के आश में प्राण गावऊँ
शायद ऊपर जाते जाते ही कुछ राशन पाजाऊं ।

इतने मैं राशन की लाइन थोड़ी सी आगे चली
तो मरे मन में भी राशन की आश बड़ी
मैंने सोचा समय बिताने के लिए कुछ किया जाये , क्यूँ न मंगाई पर चर्चा ही हो जाये
आखिर कवि हूँ वक्त की बर्वादी से डरता हूँ, समय का पूरा सदउपयोग करता हूँ।

चर्चा हो गई शुरू एक महाशय ने कहा मंगाई से आम जन त्रस्त हैं
मैं कहा फिर भी सरकार तो मस्त है।

पीछे से आवाज आई क्या बताएं कमर तोड़ मंगाई है
मैं कहा झूठ है झूठ है सरकार तो कहती है इसमें कंहा सचाई है
हमार ग्रोथ रेट तो पहले से भी हाई है।

सरकार तो मुफ्त में सलाह देती है ,चीनी कम खाओ व डॉक्टर के पैसे बचाओ
गाड़ी में चलने की क्या जरूरत है , पैदल चल के अपना सेहद बनाओ।

तभी किसी ने जोड़ दिए सरकार को खर्चो मैं कटोती करनी चाहिए
मैं कहा सरकार कटोती तो कर रही है आम जन के ताली से सब्जी की कटोती,
रोटी की कटोती, उनके पकवानों से मिठास की कटोती
शुक्र है अभी इंसानों की बाड़ी नहीं आई है
अभी कंहा मंगाई है।

तभी दुकान से आवाज आई जाओ जाओ राशन खत्म हो गया भाई
ये सुनकर लोग शोर मचाते है,तभी वहां मंत्री जी आते है
एक बार फिर वादों का बिगुल बजाते है, कहते है
इस बार तो कम दामो पर राशन दिया है, अगली बार हमे फिर
से जिताओगे तो मुफ्त में राशन पाओगे ।

आखिर हार कर मैं घर को वापस आ जाता हूँ
शायद कभी न खत्म होने वाली इस राशन की लाइन से मुक्ति चाहता हूँ
अंत में आपसे जानना चाहता हूँ,
आखिर कब तक आम जन भूखे पेट सोये गा
व भूखे पेट मर जायेगा
आखिर कब खत्म होगी भूख से आम जनता की लड़ाई.......

2 comments:

  1. बहुत खूब । सुन्दर व्यंग है ।

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