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Saturday 13 November, 2010

बचपन की आस

आज हम हम सब बाल दिवस मना रहे है पुरे देश में जगह जगह सेमिनार और कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है लेकिन क्या सही में भारत के बचपन को उसका अधिकार मिल पाया हैआज यह बचपन हमसे कुछ कहना चाह रहा है अपने चाहत को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना चाह रहा है.................

मेरा भी मन करता है बारिश में कागज की नाव तेरानो को
ममी पापा के ऊँगली पकड़ कर सुबह सुबह स्कूल जाने को
दादा दादी के संग परियो की कहानी में डूब जाने को
शाम डले दोस्तों के साथ क्रिकेट पतंग उड़ाने को

मेरा भी मन करता है बारिश में कागज की नाव तेरानो को ....2

मेरा मन भी पढने को करता है
पढ़ कर डॉक्टर टीचर इनजिनीर खूब खूब बड़ा बने को करता है
लेकिन सपने सपने तो आकिर सपने होते है
जो सुबह की किरणों के साथ टूट जाते है

मेरा भी मन करता है बारिश में कागज की नाव तेरानो को.....2

सुबह कोई आवाज लगाता है छोटू चल टेबल साफ कर दे
तू कोई कहता है छोटू चल गरम गरम चाय बना दे
कंही घर पर एक और जंहा बचपन सोता है
वंही घर के झाडो बर्तन करते करते छोटू तन्हाई मैं रोता है
छोटू छोटू के शब्दों मानो इनका निजी अस्तित्व कंही डूब गया हो
भारत के इस बचपन के सारे सपने टूट गया हो।

मेरा भी मन करता है बारिश में कागज की नाव तेरानो को...2

वह छोटू हमसे कुछ नहीं बस अपना बचपन मांग रहा है
जीवन के बस कुछ क्षण मांग रहा है
अगर हमें भारत को सही में समृद्ध बनाना है
तो भारत के इस बचपन को उसका बचपन लोटाना होगा ।

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